गोलघर




हेलो दोस्तों! GreyMatters पॉडकास्ट में आपका स्वागत है।


किसी देश को विरासत में मिले धरोहर सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि उसके अतीत का आईना होते हैं। धरोहरों के जरिए हम उस देश की प्राचीन सभ्यता-संस्कृति, जीवन शैली, परंपराओं और स्थापत्य कला को करीब से जान पाते हैं।


भारत में भी अनेक ऐसे धरोहर हैं, जिनकी देश-दुनिया में एक विशिष्ट पहचान है और जिनको देखने मात्र के लिए सैलानी खिंचे चले आते हैं।


आज से हम अपने देश की कुछ बहुचर्चित धरोहरों पर एक विशेष पॉडकास्ट सीरीज शुरू कर रहे हैं और इसकी शुरुआत बिहार की धरोहरों से कर रहे हैं।


बिहार, जो लोकतंत्र की जननी है। बिहार, जहां दुनिया का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय था। बिहार, जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था...


लेकिन, क्या आपको पता है कि इस बिहार में एक ऐसी अनूठी इमारत भी है, जिसमें एक साथ 1 लाख 40 हजार टन अनाज रखा जा सकता है! नहीं पता!


चलिए, एक हिंट और देती हूं। उस इमारत की आकृति गुम्बदाकार है और उसमें एक भी पिलर नहीं है! याद आया!


जी हां! मैं बात कर रही हूं बिहार की राजधानी पटना में स्थित, 236 साल पुराने गोलघर की, जो आज भी बिहार आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का एक प्रमुख केंद्र है।


तो चलिए, आपको इस गोलघर की कहानी सुनाती हूं, और साथ में इसकी सैर कराती हूं।


बात उन दिनों की है, जब अंग्रेज नए-नए भारत आए थे। 1764 ईस्वी में बक्सर का युद्ध जीतने के बाद पूरे बंगाल पर ईस्ट इंडिया कंपनी को शासन का अधिकार मिल गया था। तब बिहार भी बंगाल का ही हिस्सा था। इसके पांच साल बाद, वर्ष 1769 से 1773 के बीच बंगाल में भीषण अकाल पड़ा, जिसमें सरकारी अनुमानों के मुताबिक करीब एक करोड़ से अधिक लोग भुखमरी के शिकार हो गये थे!


भूख से त्राहिमाम करती बंगाल की जनता पर शासन करना अंग्रेजों के लिए मुश्किल हो गया था। इसे देखते हुए तब के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग ने ब्रिटिश फौजों के भोजन के लिए अनाज का भंडारण करने उद्देश्य से गोलघर के निर्माण की योजना बनाई। गोलघर पर लगे शिलापट्ट में लिखा है कि इसका निर्माण अकाल के प्रभाव को कम करने के लिए, तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के आदेश पर, जनवरी 1784 ईस्वी को शुरु हुआ था जो कि 1786 में जा कर पूरा हुआ।


गोलघर पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से पश्चिम में स्थित है। और 125 मीटर चौड़ी एवं 29 मीटर ऊंची इस गोलाकार इमारत के शिखर पर चढ़ने के लिए कुल 145 सीढ़ियां हैं। जो भी इस गोलघर को देखने आता है, उसका मन इन सीढ़ियों पर चढ़ते हुए इसके शिखर तक पहुंचने के लिए मचल उठता है। हो भी क्यों न, गोलघर पर  चढ़ कर जहां एक तरफ पटना शहर का बड़ा हिस्सा देखा जा सकता है, तो वहीं, दूसरी तरफ पतित पावनी गंगा के मनोहारी दृश्यों और उस पर निर्मित लंबे पुलों को भी निहारा जा सकता है।


क्या आपको पता है कभी गोलघर के शीर्ष पर 2 फीट 7 इंच व्यास का एक छेद भी हुआ करता था, जिसे इसके अंदर अनाज डालने के लिए छोड़ा गया था। हालांकि अब हम उस छेद को नहीं देख सकते, क्योंकि बाद में उसे भर दिया गया था। 


आपके लिए यह हैरानी की बात यह हो सकती है कि जिस प्रकार वादियों में आवाज echo होती है, उसी प्रकार गोलघर के अंदर भी एक आवाज 27 से 32 बार प्रतिध्वनित होती है। है न यह अपने आप में रोचक!


इस गोलघर को वर्ष 1979 में राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया। 2019 में 'इंडियाज मोस्ट वांटेड' नामक हिन्दी फिल्म में भी गोलघर को दिखाया गया है।


कभी पटना की सबसे ऊंची इमारत के रूप में जाना जाता था यह गोलघर। वक्त के साथ इस शहर में भले ही और भी बहुत सी ऊंची इमारतें खड़ी हो गई हों, लेकिन सैलानियों में आज भी यह अपनी एक अलग अहमियत रखता है और गोलघर को देखने का रोमांच आज भी उतना ही है।  


तो दोस्तों आज के पॉडकास्ट में GreyMatters Communications की तरफ से यह थी बिहार के धरोहरों पर एक चर्चा, जिसमें आज का विषय था गोलघर। अगले पॉडकास्ट में आपसे फिर मुलाकात होगी एक नए धरोहर और उसकी विशेषताओं पर चर्चा के साथ।


तब तक के लिए सलाम- नमस्ते!