नालंदा विश्वविद्यालय  




हेलो दोस्तों! GreyMatters पॉडकास्ट में आपका स्वागत है!




बिहार की धरोहरों पर आधारित विशेष पॉडकास्ट सीरीज के पिछले अंक में हमने पटना के गोलघर की चर्चा की थी। इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए आज हम दुनिया के पहले आवासीय विश्वविद्यालय की सैर करेंगे, जहां कभी कई देशों के विद्यार्थी पढ़ने आते थे। जी हां, आपने बिल्कुल सही समझा। आज हम आपको बताएंगे नालंदा विश्वविद्यालय के अतीत और वर्तमान की पूरी दास्तान।


बिहार की राजधानी पटना से करीब 90 किलोमीटर दक्षिण में स्थित विश्व प्रसिद्ध नालंदा यूनिवर्सिटी आज भी अपने अवशेषों के साथ विद्यमान है। इसकी स्थापना कुमारगुप्त प्रथम ने 450 ई० में की थी। इसका परिसर स्थापत्य कला का एक अद्भुत नमूना था, जहां करीब 300 कमरे और 7 बड़े कक्ष और एक विशाल 9 मंजिला पुस्तकालय था, जिसमें कभी 3 लाख से अधिक किताबें मौजूद थीं। इसका परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था, जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। यहां अध्ययनरत करीब 10 हजार विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए करीब दो हजार शिक्षक थे। यहां भारत के अलावा कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया एवं कई अन्य देशों से विद्यार्थी पढ़ाई के लिए आते थे। चीनी यात्री हेनसांग ने भी अपनी शिक्षा यहीं ग्रहण की थी और बाद में अपनी पुस्तक में नालंदा विश्वविद्यालय का विस्तार से उल्लेख किया था।


करीब 800 वर्षों तक विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले इस प्राचीन विश्वविद्यालय को 1193 ई में बख्तियार खिलजी के आक्रमण ने नेस्तनाबूत कर दिया। कहा जाता है कि आक्रमण के दौरान यहां न केवल मार-काट मचाई गई थी, बल्कि इसे आग लगा कर ज्ञान के इस प्रकाश-पुंज को अंधेरे में धकेल दिया गया था। 


अपने सुनहरे अतीत को खंडहरों में समेटे नालंदा विश्वविद्यालय सदियों तक पत्थर बन कर देवी अहिल्या की तरह अपने तारणहार का इंतजार करता रहा। मार्च 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति Dr. A.P.J Abdul Kalam इस विश्वविद्यालय के लिए अहिल्या के राम बन कर आये। तब बिहार विधानसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने Nalanda University को पुनर्जीवित करने का प्रस्ताव रखा। उनके इस दूरदर्शितापूर्ण विचार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तुरंत स्वीकार कर लिया और जल्द ही नालंदा यूनिवर्सिटी को पुनर्जीवित करने का आधिकारिक प्रस्ताव केंद्र सरकार के समक्ष पेश कर दिया। दुनिया के कई देशों ने इस यूनिवर्सिटी को पुनर्जीवित करने में मदद की पेशकश की। वर्ष 2010 में नालंदा यूनिवर्सिटी एक्ट भारतीय संसद के दोनों सदनों में पास हुआ।


प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर के निकट ही करीब 450 एकड़ में इसके नये कैंपस का निर्माण किया गया और 2014 में इसने फिर से विद्यार्थियों के लिए अपने द्वार खोल दिये। इस तरह करीब 800 वर्षों के अंतराल के बाद नालंदा यूनिवर्सिटी पुनर्जीवित हो गई।  


करीब 800 वर्षों तक अपने ज्ञान से विश्व को आलोकित करने, फिर करीब 800 वर्षों तक गुमनामी के अंधेरे में खो जाने और एक बार फिर दुनियाभर में ज्ञान का प्रकाश बिखेरने वाला यह नालंदा विश्वविद्यालय अपने आप में एक मिसाल है। आज भारत सहित 18 देश इसके सदस्य हैं।


तो दोस्तों यह थी नालंदा यूनिवर्सिटी पर आधारित GreyMatters Communications की विशेष पेशकश। अगले पॉडकास्ट में फिर मुलाकात होगी बिहार की एक नई धरोहर की चर्चा के साथ। 


तब तक के लिए सलाम- नमस्ते!