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हम सब आजादी की 75वीं वर्षगांठ का जश्न मना रहे हैं। आजादी हमारे लिए वह अनमोल धरोहर है, जिसके लिए भारत माता के न जाने कितने सपूतों ने हँसते-हँसते अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। उनमें से बहुत से ऐसे unsung heroes भी थे, जिनकी कहानियां इतिहास के पन्नों में वह स्थान नहीं पा सकीं, जिसकी वो हकदार थीं।


आजादी के अमृत महोत्सव की वेला में unsung heroes पर आधारित विशेष पॉडकास्ट सीरीज में आपने श्री जीत सिंह, श्रीमती तारा द्विवेदी, श्री जगन्नाथपुरी और श्रीमती बिमलप्रतिभा देवी जी की कहानियां सुनीं। इसी सीरीज में आज हम आपको सुना रहे हैं एक और unsung hero पीर अली खान साहब की दास्तान। 


पीर अली खान


बात 7 जुलाई 1857 की है। पटना के जिलाधिकारी कार्यालय के सामने बड़ी संख्या में लोग जमा थे। उनके चेहरे पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आक्रोश साफ दिख रहा था। आक्रोश इसलिए, क्योंकि वहां क्रांतिकारी पीर अली खान को सार्वजनिक रूप से फांसी दी जाने वाली थी।


फांसी से पहले कमिश्नर विलियम टेलर ने प्रस्ताव दिया था कि अगर पीर अली पटना के क्रांतिकारियों की पहचान और उनके छुपने की जगहों के बारे में बता दे, तो उसे छोड़ दिया जाएगा। पीर ने माफी की पेशकश सुनते ही उसे ठुकरा दिया था।


उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के मुहम्मदपुर में जन्मे पीर अली खान जब सात साल के थे, तो पटना आ गये थे। उनकी परवरिश पटना के जमींदार नबाब मीर अब्दुल्ला ने की। बाद में पीर अली ने किताब की एक दुकान खोली, जो पटना के क्रांतिकारियों के लिए योजना बनाने का मिलन स्थल बन गयी। पीर अली ने अंग्रेजों के खिलाफ नियमित अभियान चलाया और धीरे-धीरे अपना एक छोटा संगठन खड़ा कर लिया।


3 जुलाई 1857 को अपनी दुकान पर जुटे करीब दो सौ सशस्त्र क्रांतिकारियों को साथ लेकर पीर अली ने पटना के प्रशासनिक भवन पर हमला कर दिया। हमले में कमिश्नर विलियम टेलर तो बच गया, लेकिन एक अंगरेज अधिकारी मारा गया और कुछ क्रांतिकारी भी शहीद हो गये।


अगले दिन 4 जुलाई, 1857 को पीर अली को कई साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। उनमें से ज्यादातर को एक दिन बाद ही बिना किसी सुनवाई के फांसी दे दी गई, लेकिन पीर अली को बेरहमी से प्रताड़ित किया गया और जिरह की गई। फिर उन्हें 7 जुलाई को सार्वजनिक रूप से फांसी देने की घोषणा की गई।


फांसी के फंदे को चूमने से पहले पीर अली ने विलियम टेलर से कहा था, ‘जीवन में कुछ ऐसे अवसर आते हैं, जब जान बचाना अच्छा होता है। लेकिन, कुछ ऐसे अवसर भी आते हैं, जब जान दे देना ही अच्छा होता है। आज तुम मुझे फांसी पर लटका दोगे, लेकिन मेरे जाने के बाद तुम्हारे इरादों को ध्वस्त करने के लिए हजारों क्रांतिकारी जन्म लेंगे।’


पीर अली को पटना में जिस स्थान पर फांसी दी गई थी, उसे अब शहीद पीर अली खान पार्क के नाम से जाना जाता है। यह पार्क यहां आने वालों को आजादी के इस गुमनाम नायक की शहादत याद दिलाता रहा है और हमेशा दिलाता रहेगा।


तो दोस्तों GreyMatters Communications की तरफ से यह थी unsung heroes पर विशेष पॉडकास्ट सीरीज। 


We wish you a very Happy Independence Day!