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21 जून, यानी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस। जी हां आज के इस episode में बात करेंगे हमारे मनानीय प्रधानमंत्री जी के प्रयासों के बल पर अंतरराष्ट्रीय पटल पर स्थान पा चुके योग दिवस के बारे में।


आज अर्थात 21 जून' 23 को नौवें विश्व अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। यह अकल्पनीय है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित किसी दिवस ने वैश्विक आंदोलन का स्वरूप ले लिया हो। आज योग दिनो-दिन हमारे जीवन शैली का हिस्सा बनता जा रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि योग पूरे विश्व में भारत की दिव्य प्राचीन कला और संस्कृति के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुका है।




योग का उदभव आज से 5000 वर्ष पूर्व हुआ था। योग के बारे में गीता और महाभारत में भी वर्णन है। प्राचीनतम ग्रंथ ऋगवेद में इसका उल्लेख है। योग संबंधी शिक्षाओं में शिव को आदि गुरू माना जाता है। सिंधु संस्कृति की खोज के बाद ही योग उत्पति की जानकारी प्राप्त हुई। पुरातात्विक खोज में सोपस्टोन मोहरों पर प्राप्त योगी जैसी आकृतियाँ इस बात का प्रमाण है कि इस काल में भी योग का अस्तित्व था। मंडोकोपनिषद में कहा गया है कि ब्रह्मांड के निर्माता ब्रह्मा ने अपने पुत्र अर्थव महर्षि को योग का ज्ञान दिया था। फिर महर्षि अर्थव ने ऋषि अंगिरस को, ऋषि अंगिरस ने भारद्वाज ऋषि को और भारद्वाज ऋषि ने सत्यवाह को योग के बारे में बताया था।




पाश्चात् देशों को योग से स्वामी विवेकानंद ने साक्षात्कार कराया था। आधुनिक योग के लिए सन् 1893 का वह दिन महत्वपूर्ण माना जाता है जिस दिन संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व धर्म सम्मेलन का आयोजन हुआ। जिसमें स्वामी विविकानंद ने लोगों से योग के बारे में चर्चा की और उन्हें इसकी महत्ता बताई। इसके उपरांत भारत के कई महान व्यक्तित्वों के नेतृत्व में योग निरंतर प्रगति करता रहा जैसे टी.कृष्णामचारी, बी.के.एस.आयंकर, के.पट्टाभि जॉइस, टी.के.वी देसीकाचार, स्वामी शिवानंद, स्वामी योगेन्द्र, स्वामी सत्यानंद, महर्षि योगी, श्री रविशंकर, स्वामी रामदेव आदि।




योग शब्द संस्कृत भाषा की मूल धातु युज से बना है। जिसका अर्थ एकाकार है। कुछ लोगों का मानना है कि योग एक शारीरिक व्ययाम है जबकि योग एक समग्र अनुशासन है। इसे शरीर, मन और आत्मा को संतुलित व नियंत्रित करने का साधान माना जाता है। इसका ध्येय शरीर, इंद्रियों तथा मन को नियंत्रण के द्वारा आध्यात्मिक उत्कृष्टता प्राप्त करना है।




श्रीमद्भागवद्गीता में कहा गया है कि:


योगस्थ: कुरू कर्माणि सड.गं त्यक्त्वा धनंजय।


सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।




अर्थात, हे धनंजय, सुख- दुख, लाभ- हानि, शत्रु-मित्र, शीत और उष्म आदि द्वंद्वों में सर्वत्र समभाव रखना ही योग है।




बहुत से लोग योग को हिंदुओं का व्यायाम और खुद को स्वस्थ रखने का तरीका मानते हैं। जबकि इसके ठीक विपरीत योग किसी विशिष्ट धर्म, मत या समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करता बल्कि हमेशा ही यह स्वयं को आंतरिक रूप से स्वस्थ बनाने की पद्धति रही है। जो व्यक्ति पूरी लगन से योगाभ्यास करता है वह इसके लाभ को प्राप्त कर सकता है फिर चाहे वह किसी धर्म, जाति या संस्कृति से संबंधित हो।


योग सिर्फ एक शारीरिक व्यायाम नहीं है, अपितु यह चिकित्सा पद्धति और जीवन दर्शन है। योग भारतीयों की अंत:दृष्टि का संवाहक है जिसमें केवल शरीर ही नहीं बल्कि अध्यात्मिकता को जानने का भी मौका मिलता है।




इस तेज रफ्तार जीवन शैली में योग हमारे लिए अमृत समान है। अतः आप सब से निवेदन है कि आदिकाल से प्रवाहित होती योग के इस अमृत सरिता में आप सभी 21 जून (अतंरराष्ट्रीय योग दिवस) के अवसर पर अवश्य डुबकी लगाएं और योग को हमेशा के लिए अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाएं। याद रखें कि यह किसी भी देश, प्रांत, मत-पंथ-संप्रदाय के बंधनों से मुक्त है तथा स्वस्थ सुखी जीवन की कुंजी है।