Happy Chhath
GreyMatters Podcast
English - October 28, 2022 03:56 - 5 minutes - 5.25 MBFilm Interviews TV & Film Homepage Download Apple Podcasts Google Podcasts Overcast Castro Pocket Casts RSS feed
नवरात्रि गुजरी, दिवाली ने दस्तक दी। और अब दिवाली के जाते ही छठ की खुशबु हवाओं में फैल सी गई है। हवाओं में ठंडक का एहसास भी घुलने लगा है। घर की बहुत याद आ रही है।
हाँ, पता है... अब हम बच्चे नहीं रहे। नौकरी पेशे वाले matured लोग हैं। पर क्या feelings, भावनाएं कभी mature होती हैं? आप सभी को ये तो पता होगा ही कि दिल तो बच्चा है जी।
हाँ तो हम कहां थे? घर की बहुत याद आ रही है। दिवाली तो जैसे तैसे मना ली। पर अब घर जाना है। बिन कुछ कहे जो आंखें दरवाजे पर टकटकी लगाए हुए हैं, उन आँखों को खुशी के आँसू से नम करना है। माँ-पिताजी के चेहरे पर खिली हुई मुस्कुराहट को देखना है।
छठ के इस त्योहार में घर में जुटे सभी चाचा-चाची, मामा-मामी, मौसा-मौसी और भाई बहनों से मिलना है। किसी से प्यार भरे गुस्से के साथ कान खिंचवाना है, तो किसी से चंपी करवानी है।
छठ का बाजार भी तो सज गया होगा न। माँ के छठ के लिए दौरा और सूप खरीदना है। सूप में सजने वाले फलों को चुन-चुन कर उठाना है। अरता का पात, बद्धि, मिठाई और न जाने कितनी ही चीजें करनी हैं।
अरे हाँ! माँ को नहाय-खाय का गंगा स्नान भी तो करवाना है न। खरना का इंतजार तो हर किसी को होता है शायद। मिट्टी के चूल्हे में सजी आम की लकड़ी से निकलती धीमी आंच, और उस आंच पर पकती खरना की खीर। फिर पकती है रोटियाँ। वैसे एक बात बताऊँ, मेरी माँ व्रती के रूप में और खूबसूरत दिखती हैं। हम खरना कें बारे में बात कर रहे थे। खरना का प्रसाद इस ब्रह्मांड का सबसे स्वादिष्ट भोजन है। हो भी क्यों न, इस भोजन में अग्नि देव की आंच के साथ-साथ चंद्रमा की शीतलता जो मिली हुई है।
पूरा घर हंसी- ठिठोली और छठ के गीतों से गूंज रहा है। यही तो चाहिए था मुझे। यही तो miss कर रहा था न मेरा अंतर्मन। बहुत खुश हूँ मैं कि मैं भी इस माहौल का हिस्सा हूँ, कुछ छूटा नहीं मुझसे।
खैर आगे चलें! लीजिए साँझीया अरग का दिन भी आ गया। घर की सभी औरतें ठेकुआ और कसार बनाने में लगी हुई हैं। और सारे पुरुष! वो तो busy हैं घाट तैयार करने, घाट को सजाने, फलों और सूप को धोने आदि में।
लो शाम भी हो गई, वातावरण छठ के गीतों से गुंजायमान हो रहा है। ठेकुआ, कसार और धूप की भीनी भीनी खुशबू धरती पर ही स्वर्ग के होने का एहसास दे रही है।
कांच ही बांस के बहंगिया, बहँगी लचकत जाए,
उ जे लेहु न महादेव बहँगी, बहँगी घटे पहुंचाए।
डाला सज गया और घर के सभी पुरुष बहँगी लेकर घाट की तरफ बढ़ चुके हैं। माँ भी घाट पर पहुँच चुकी हैं, और पानी में उतरने की तैयारी कर रही हैं। घाट सज गया है, लाइटें लग चुकी हैं। सुपें सज गईं और अब माँ ढलते सूर्य को अर्घ्य देंगी। पूरी दुनिया उगते सूर्य को प्रणाम करती है, लेकिन ये छठ ही है, जिसमें हम डूबते सूर्य को पहले प्रणाम करते हैं और फिर उगते सूर्य को। कितना खूबसूरत और भक्तिमय माहौल है न। अद्वितीय! तभी तो छठ में दिल सिर्फ घर की ओर ही भागता है।
ढलते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही आज छठ का साँझीया अरग खत्म हुआ। कल की सुबह कितनी खुशनुमा होगी न।
3 बज चुके हैं। सब जल्दी-जल्दी घाट के लिए तैयार हो रहे हैं। 4 बजे तक घाट पर जो पहुंचना है। एक बार फिर घाट सज गया है और माँ पानी में उतरने के लिए तैयार हैं। हवाओं में मीठी सी ठंड है। पर छठ के उल्लास के आगे ठंड भी फीकी पड़ गई है। सूर्योदय होने को है और माँ अब उगते सूर्य को अर्घ्य दे रही हैं।
अरे! मुझे तो पता ही नहीं चला कि ये 4-5 दिन कैसे निकल गए। आज तो उषा अर्घ्य भी समाप्त हो गया।
एक बार फिर अपने दिल को समझाना होगा और वापस काम पर जाना होगा। अच्छा तो अब चलूँ!
फिर मिलने की उम्मीद लिए सबको मेरा प्रणाम।
GreyMatters Communications wishes you Happy Chhath